एक स्तंभकार ने, जो कि अंग्रेजी के धुरंधर बिकाऊ लेखक भी कहे जाते हैं, देश को बताया कि ‘आप’ यानी आम आदमी पार्टी राजनीति की आइटम गर्ल है। गृहमंत्री ने देश को बताया कि ‘आप’ का मुख्यमंत्री ‘वेड़ा’ है। एक और विकट शख्स प्रकट हुए, जिन्होंने राष्ट्र के लिए संदेश जारी किया कि इससे अच्छी सरकार तो आइटम गर्ल राखी सावंत चला लेती।
गणतंत्र दिवस पर इन शहनाइयों के बीच जागरूक मतदाता के नाम पर पेड़े बंट रहे हैं। सारे ‘मैं’, ‘हम’ का ठप्पा ठोंकने को बेताब हैं। मराठी की जिस शब्दावली में वेड़ा उर्फ पागल और येड़ा उर्फ मूर्ख-अज्ञानी निकल कर आता है, उसी से एक मुहावरा भी निकलता है – ‘येड़ा बनकर पेड़ा खाना।’ ये उस धूर्तता की सेवा में बना है, जिसका उपयोग करके तमाम धूर्त, मासूमियत से ईमानदारों का माल उड़ा ले जाते हैं।
‘क्या आप इस गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर एकाध पेड़ा नहीं खाना चाहेंगे?’ मैंने उनसे पूछा। जब से गणतंत्र की स्थापना हुई, वे पेड़े के धंधे में हैं। वे ऐसे सयानों को पेड़े बेचते हैं जो ‘येड़े’ और ‘वेड़े’ बनाने के धंधे में हैं।
‘मैं पेड़े खाता हूं पर अपनी दुकान के नहीं। चूंकि गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या है, इसलिए आप चाहें तो किसी को येड़ा बनाकर अपने लिए भी पेड़ा कबाड़ सकता हूं।’ उन्होंने कहा। ‘नहीं मेरा इतना-सा कहना है कि इतने साल हो गए। गणतंत्र दिवस पर पहली बार राष्ट्रीय चिंता का विषय ‘वेड़ा’ और ‘येड़ा’ है। आप पेड़ा खाते तो समस्या का समाधान करने की दिशा में मदद मिल सकती थी।’
‘समस्या अपने आप में एक पेड़ा है। लोग उसका समाधान कैसे करेंगे? एक पेड़ा खत्म हुआ, दूसरा बनेगा।
दूसरा खत्म हुआ, तीसरा बनेगा। पेड़े का समाधान उसके खाए और आनंद उठाए जाने में है। मैं अपनी दुकान देश के आम आदमियों के भरोसे सालों से चला रहा हूं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि हर पेड़ा खाए जाने के लिए बना है। प्रकारांतर से हर आम आदमी ‘वेड़ा’ और ‘येड़ा’ बनाए जाने के लिए बना है।’ ‘आपको आम आदमी के इतने ‘वेड़े’ और ‘येड़े’ बने रहने का भरोसा कैसे है?’
‘यदि न होता तो आइटम गर्ल वाला मुहावरा कैसे सामने आता?’
‘आइटम गर्ल का येड़े, वेड़े या पेड़े से क्या संबंध है?’
‘आप गणतंत्र दिवस मनाते रहते हैं और आपको इन रिश्तों का ही नहीं पता तो इस किस्म के त्योहार मनाने का आपको हक ही नहीं है।’
‘हो सकता है कि आप सही हों। मगर मैं गणतंत्र दिवस भी मनाना चाहता हूं और त्योहार के पेड़े भी खाना चाहता हूं। मुझे ‘येड़ा’ या ‘वेड़ा’ बनने से सख्त ऐतराज है।’
‘बड़ी अच्छी बात है। आइटम गर्ल को भी पेड़े मिलते हैं। वह सिर्फ एक चालू गीत गाने और महफिल लूटने के लिए बीच फिल्म में लाई जाती है। आपको आइटम गर्ल के खाते में पेड़े मिल सकते हैं।’
‘आइटम गर्ल तो लंपट भीड़ के लिए खड़ी कर दी जाती है। क्या गणतंत्र भी राजनीति की लंपट भीड़ का जलसा है?’
‘देखिए, राजनीति की बात थोड़ी गहरी होती है। इसमें कभी-कभी विलेन से मजबूर हीरोइन को भी आइटम पेश करना होता है। पर इससे गणतंत्र को क्या फर्क पड़ता है? आप इस दुविधा में क्यों पड़ते हैं? आप तो पेड़े खाइए, चाहे जिसके खाते में मिले।’
‘मैं पेड़े गणतंत्र की मजबूती की खुशी में खाना चाहता हूं। आप गणतंत्र में आइटम गर्ल का खाता खड़ा करना चाहते हैं।’
‘गणतंत्र की मजबूती तब होगी, जब मेरे पेड़ों की दुकान का कारोबार मजबूत होगा। इसके लिए येड़े, वेड़े या आइटम गर्ल, जो भी बनाना पड़े, देश की खातिर बनाना ही पड़ेंगे। आपको इसमें से जो भी बनना स्वीकार्य हो, बनें या बनाएं ताकि गणतंत्र की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।’
वे नाराज हो गए हैं। वे मेरे नाच पर चवन्नी फेंकने और सीटी बजाने को बेताब हैं। मुझे गणतंत्र नष्ट करने वाला कहकर धिक्कार रहे हैं। मैं सड़क पर सोता हूं, वे कहते हैं, गणतंत्र का अपमान हो रहा है। मैं बस में खड़ा होता हूं, वे कहते हैं मेरी वजह से गणतंत्र की जेब कट रही है। मैं ‘येड़ा’ बनने से इन्कार करता हूं, वे पेड़े की राष्ट्रीय गणतांत्रिक अर्थव्यवस्था को खतरा बताकर छाती पीटना शुरू कर देते हैं।
मेरे आस-पास कई वेड़े हैं, वेड़ों के आस-पास और भी वेड़े हैं। पेड़े वालों को डर है कि ये वेड़े इस तरह बढ़ते रहे तो उनके पेड़ों के कारोबार का क्या होगा?
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