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Yashwant Vyas

कालूखेड़ा में बैठकर अमेरिका को मारना

होम लोन की ईएमआई फिर बढ़ गई। केदारनाथ के करीबी एरिया में एक गरीब बहे हुए मकान के मुआवजे के लिए घूम रहा है और एक चालू होटल वाले को


courtesy satish.acharya

पेट भर करके माल मिल गया है। कवि कहता है, अमेरिका को ठीक करना पड़ेगा।

‘आपके यहां गटर गंदा है और मच्छर बढ़ गए हैं। सफाई की बजाय आप लेख लिख रहे हैं कि अमेरिका ने मच्छरों को लेकर ऐसी अंतरराष्ट्रीय नीति बनाई है कि उसकी दवाएं ज्यादा खप सकें। क्या आपको यह ठीक-ठीक लगता है?’ मैंने पूछा।

‘आप मेरे सफाई न करने पर ज्यादा चिंतित प्रतीत होते हैं। मैं वैश्विक स्वच्छता के लिए संघर्ष करता हूं।’

उन्होंने कहा, ‘आप जैसे लोग सफाई का सवाल उठाकर बड़े प्रश्नों से ध्यान बंटाने के व्यवसाय में हैं। मैं आप जैसे लोगों की कोई कदर नहीं करता।’

‘क्या अमेरिका से झाड़ू की सप्लाई ठीक होगी, ताकि सफाई के प्रश्नों को वाकई वैश्विक बनाया जा सके?’

‘सवाल यह है कि सीरिया में कौन-सी झाड़ू इस्तेमाल होगी?’

‘सीरिया में झाड़ू नहीं, बंदूकें चल रही हैं।’

‘यही तो मैं भी अमेरिका से पूछना चाहता हूं। अभी यहां, इस वक्त, मच्छरों को लेकर जो नीति होगी, वही सीरिया में आदमियों को लेकर हो तो संघर्ष और भी गहरा हो जाता है।’

‘मुझे यह तो नहीं पता। न ओबामा मेरे लिखे लेख पढ़ पाते हैं, न मनमोहन सिंह। सच्चाई यह है कि हम लिखते हैं, हम ही पढ़ते हैं और कुछ दोस्त फोन कर देते हैं। इसलिए पता भी नहीं चलता कि अगर मैंने ओबामा को सीरिया पर सलाह दी तो वे कितना मानेंगे? ऊपर से बंदूक और झाड़ू के बीच आपने प्राथमिकता का द्वंद्व खड़ा कर दिया है। आप कुछ मदद करेंगे कि ग्राम-पोस्ट कालूखेड़ा से बैठकर अमेरिका को कैसे मारा जाए?’

‘मैं तो पचास साल से मार रहा हूं। मैंने दो बार इराक में मारा, तीन बार इस्लामाबाद में मारा, एक बार रूस में मारा। मैंने बुश को भी मारा था और गोर्बाचेव की भी धुलाई की थी। वक्त जरूरत कोरिया पर भी हाथ आजमा लेता हूं। कालूखेड़ा से यह सब करने में जिगर चाहिए।’

‘मुझे लगता है आप इराक में अंतत: सफल हुए। अफगानिस्तान में भी आपकी कोशिशों से कामयाबी मिल पाई है। क्या आप सुबह का नाश्ता कालूखेड़ा में व्हाइट हाउस की गोपनीय रिपोर्ट से करते हैं?’

‘यह काम एजेंसियों का है। मैं सैद्धांतिक पटखनी देने में भरोसा करता हूं।’

‘कालूखेड़ा की सैद्धांतिक मिसाइल से अमेरिका धराशायी हो सकता है, तो आप मामूली व्यावहारिक हाथ धुलाई से अपने यहां गटर तो जरूर साफ करवा सकते होंगे।’

‘आप अंतत: कालूखेड़ा से निकलकर भी गटर में ही गिरे। जब विश्व को साम्राज्यवादी ताकतों और दक्षिणपंथी अराजकतावादियों से मुक्ति दिलाना प्राथमिकता, हो तब गटर आप लोकल अक्ल वाले ही साफ करें तो बेहतर होगा।’

मैंने उन्हें बताया कि मामला सिर्फ गटर की सफाई से मच्छरों की मुक्ति का आनंद लेने तक ही नहीं रह गया है। गटर में एक लाश भी निकली है। चूंकि सालों से सफाई नहीं हुई थी, इसलिए पता ही नहीं चला कि यह लाश यहां कब से है। दरअसल हाल में हुए दंगे की वजह से पुलिस वाले अति सक्रिय हैं। वे लाशें ढूंढ़कर छुपा रहे हैं। उन्होंने ही इसे बरामद किया है।

उनका दिल खुश हो गया। चेहरा चमकने लगा, ‘कौन है? हरा कि केसरिया?’

‘गटर में सड़ चुकी लाश के बारे में यह तय करना मुश्किल है। मैं तो सिर्फ मच्छरों और सफाई तक चिंतित था। यदि आपके नेतृत्व में गटर साफ होती रहती तो न मच्छर होते न लाश ही पड़ी होती। हो सकता है, यह आदमी मरते-मरते भी बच जाता।’

वे फिर से तीखे हो गए, ‘तुम पहचान छुपा कर कुछ दक्षिणपंथियों को बचाने की साजिश कर रहे हो। मैं इसका पर्दाफाश करूंगा। वाशिंगटन से लेकर आजमगढ़ तक छान डालूंगा। निकल जाओ! मुझे लंबा लेख लिखने दो।’

मैं निकल आया हूं। कुछ साथी गटर साफ करना चाहते हैं, पर पुलिस ने इलाका सील किया हुआ है। मुहल्ले को मच्छर काट रहे हैं। डेंगू और मलेरिया हुआ जा रहा है।

कालूखेड़ा की गली से अमेरिका के खिलाफ एक सैद्धांतिक मिसाइल तैयार हो रही है।

जब अमेरिका निपटे तो हमें बताना। हम तो सिद्धांत जानते नहीं, बस गटर साफ करने जा रहे हैं।

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